Monday, August 6, 2012

तब........

तब........ 
मुठ्ठी में था आकाश,
कभी निकलकर 
आँखों में रहता था,
कभी आस-पास.
फिर......
मुठ्ठी बड़ी हो गई,
आकाश फैलता गया,
मुठ्ठी छोटी पड़ गई,
आँखें,ख्वाबों से भर गई.
इसी बीच 
हमारे शहर के 
ऊँचाईयों की ओट में, 
रहने लगा 
आकाश......
बस ज़रा सा 
रह गया 
आस-पास.

21 comments:

  1. निकल गया आसमां मुट्ठी से , खाली खाली सा हो गया मन , जाने कहाँ खो गया आसमां !

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  2. बहुत सुन्दर...एक कल्पना की उड़ान...

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  3. अब तो आसमान का ज़रा सा टुकड़ा ही दिखता है ...सुंदर रचना

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  4. हाथों से निकल जाता है जब आकाश तो सब कुछ खाली हो जाता है ... सांय सांय करता खाली आकाश ...

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  5. आकाश......
    बस ज़रा सा
    रह गया
    आस-पास.
    Zara-sa bhee rah jaye phir bhee theek hai,warna to kuchh bhee nahee rahta! Bahut hee sundar rachana!

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  6. ऊँचाईयों की ओट में,
    रहने लगा
    आकाश......
    बस ज़रा सा
    रह गया
    आस-पास.
    वाह ... बेहतरीन

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  7. बड़े शहरों की त्रासदी

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  8. न जाने कहाँ खो गया आसमांन,,,,
    कल्पनाओं की की बढ़िया प्रस्तुति,,,,
    RECENT POST...: जिन्दगी,,,,

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  9. कविता की व्यंजना, तंज होती मुट्ठी और विस्तृत होती अकांक्षा की ओट में, मानव स्वभाव की लुका-चिपी की बेहतर प्रस्तुति करती है।

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  10. This comment has been removed by the author.

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  11. फिर......
    मुठ्ठी बड़ी हो गई,
    आकाश फैलता गया,
    मुठ्ठी छोटी पड़ गई,
    आँखें,ख्वाबों से भर गई.

    फिर भी चाह है शहर की उचे इमारतों की जहाँ छुप जाता है आसमां

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  12. अहा! बहुत ही खूब.. आज की सच्चाई है यह कृति!

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  13. आकाश अब भी है वैसा का वैसा..बस नजर चाहिए..

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  14. दो गज ज़मीं और मुट्ठी भर आकाश से अधिक समेट लेने की होड ने आकाश तो गंवा ही दिया है शायद धरती भी न बचे!! बहुत ही गहरी बात, बड़े साढ़े हुए अन्दाज़ में आपने प्रस्तुत किया है!!

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  15. ज़रा-सा आसमान भी कईयों को नसीब नहीं. कहीं धरती नहीं कहीं आसमान नहीं... शहरीकरण का सब खेल. सुन्दर रचना, बधाई.

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  16. सुन्दर भाव... आकाश......
    बस ज़रा सा
    रह गया
    आस-पास.

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  17. ऊँचाईयों की ओट में रह गया छोटा सा आसमान जो मुट्ठी से निकल गया था !
    बेहतरीन !

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  18. ना जमीन रही और ना आसमान। अच्‍छा चिंतन।

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  19. जी बिलकुल सच कह रही हैं अब तो आकाश देखने के लिए सड़क पर निकलना पड़ता है

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  20. महानगर की त्रासदी और ख्वाबों के लिये छोटा पडता आसमान ।

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